🐍 नाथपंथी जी का राष्ट्रवादी झाड़ू-पोंछा विश्लेषण:
✍️ लेखक: युनुस खान जी
गुरुग्राम! नाम सुनते ही सामने आता है चमचमाती सड़कों पर सरपट दौड़ती BMW, घर के अंदर एयर कंडीशनर, और बाहर झाड़ू लगाता कोई बंगाल से आया "घुसपैठिया मजदूर"। लेकिन अब हाल यह है कि वही BMW वालों की मैडम अब झाड़ू हाथ में लेकर इंस्टाग्राम रील बना रही हैं — "Desi Cleaning Vibes ✨"।
“जिस देश में झाड़ू लगाने वालों को घुसपैठिया कहा जाता है, वहां गंदगी सिर्फ ज़मीन पर नहीं, सोच में भी होती है।”
🚨 पुलिस और बिना नंबर प्लेट के ठेकेदार देशभक्ति
गुरुग्राम की गलियों में एक नया "सीरियल" चल रहा है — बिना नंबर प्लेट वाली गाड़ियां, पुलिस और कुछ 'अज्ञात देशभक्त' गरीबों को घेर रहे हैं। सवाल एक ही: "कहां से आए हो?" अगर जवाब बंगाल, बिहार या मुस्लिम मोहल्ला निकला, तो अगला जवाब गोली नहीं, गाड़ी की ठोकर में मिलता है — "घुसपैठिया हो तुम!"
“ये पूछने वाले कौन हैं? नगर निगम? चुनाव आयोग? या मोहल्ले का WhatsApp यूनिवर्सिटी का एडमिन?”
🍅 सब्जी और समाजवाद
अब सब्ज़ी के ठेले नहीं आ रहे। दादाजी iPhone लेकर निकलते हैं सब्जी खोजने। मैडम खुद झाड़ू पोछा कर रही हैं। सबको याद आ रहा है – मजदूर कितने ज़रूरी थे।
''बाप बेटे से बाजार मे ऑटो ड्राइवर का जीपीएस लोकेशन मांग रहा था, बेटा बोल पापा फोन रखिए दिमाग खराब है सुबह से शाम हो गई चायवला नहीं आया पैदल घर चले जाओ"
🗑️ कूड़ा और कॉर्पोरेट देशभक्ति
मज़दूरों के पलायन के बाद कूड़े के पहाड़ उग आए हैं। नगर निगम का ठेका सिर्फ कागज़ों में काम कर रहा है। अब हर कॉलोनी के कोने में ‘स्वच्छ भारत’ की जगह ‘कचरा एक्सप्रेस’ खड़ी है।
🙏 मज़दूर और मज़हब
मज़दूर अगर हिंदू है तो ‘गरीब’, मुसलमान है तो ‘घुसपैठिया’। और अगर बंगाल से आया है तो ‘संभावित खतरा’। राजनीति अब धर्म देखती है, रोटी नहीं।
“मतलब अगर मेहनत करता है, मेहनताना लेता है, और मेहनत से घर बनाता है, तो उसका धर्म तय करेगा कि वो देशवासी है या नहीं?”
🤡 बेशर्मी की बारात
टीवी डिबेट में एंकर पूछते हैं — टमाटर हरा या टिंडा "क्या गरीब देश को कमजोर कर रहे हैं?" वही एंकर रात को 5-स्टार होटल में अपने सोशल मीडिया के लिए गरीब बच्चों के साथ पोज़ भी देते हैं।
🧨 निष्कर्ष
गुरुग्राम अब साफ नहीं रहा, न सड़कें, न नीयत। मज़दूरों के जाने से सफाई रुकी नहीं, उजागर हुई है — उस सोच की जो सिर्फ एसी कमरे से दुनिया देखती है।
“देश को साफ करने का सपना देखने वालों से गुज़ारिश है — पहले अपना नज़रिया साफ़ कीजिए। क्योंकि देश कूड़े से नहीं, सोच की सड़ांध से गंदा होता है।”
Comments
Post a Comment