🧨 ठाकरे रीमिक्स 3.0: जब 13 साल बाद 'भुरजी' फिर से तवे पर चढ़ी!
फोटो में देखिए —
तीन ठाकरे एक फ्रेम में:
- पीछे फोटो में 'साहब' (बालासाहेब ठाकरे),
- सामने दोनों बेटे — एक 'सिस्टम से हारे हुए' और दूसरा 'सिस्टम से गायब हुए'।
अब सवाल ये है कि ये अचानक भाईचारा कैसे जाग गया?
तो चलिए शुरू करते हैं — नाथ की मसालेदार पॉलिटिकल पकाई👇
🧂 पहला तड़का:
"उद्धव साहब का शीशमहल शिंदे चाचा ने तुड़वा दिया!"
साहब मुख्यमंत्री थे, सत्ता में थे, एकदम बालकनी वाला रुतबा था। फिर आए शिंदे बाबा — और उद्धवजी के शीशमहल में बगावत की छेदक मशीन चला दी। आज साहब का महल सिर्फ "यादों की रजाई" बनकर रह गया है। राजनीति? बस ट्विटर, कोर्ट और "मीटिंग मीटिंग" खेल में अटक गई।
🍳 दूसरा चिमटा:
"राज ठाकरे: जोश में खूब बोले, वोट में सब गोल-गोल हो गया!"
राज साहब ने खूब भाषण दिए — लाउडस्पीकर हटाओ, ठेले लगाओ, बिहारियों को भगाओ। हिंदी भगाओ, मराठी बचाओ पर राजनीति का GPS जब जनता के वोट पर घूमा, तो राज साहब का ग्राफ वैसे ही गायब हो गया जैसे लोकल ट्रेन में नेटवर्क।
अब सोचो — जब आपकी पार्टी "महाराष्ट्र नवनिर्माण" हो और निर्माण खुद रुक जाए,
तो क्या करें? सीधा भाई के घर वापसी!
🧅 तीसरा तड़का:
"जनता की भुर्जी तो बनी ही नहीं!"
दोनों भाइयों की राजनीति में बातें ज़्यादा, मसाले कम। जनता ने सोचा था कि कोई नया स्वाद मिलेगा, मगर मिला सिर्फ "राष्ट्रवाद का झोल और पारिवारिक रोल।"
एक भाई धर्मनिरपेक्ष बना तो दूसरा 'मराठी मानुष' के नाम पर भटका। पर दोनों की थाली में वोट की सब्ज़ी अधपकी ही रह गई।
🍋 नींबू-नमक का छौंक:
"13 साल बाद फिर साथ-साथ — क्यों?"
क्योंकि शिंदे-मोदी ब्रांड की राजनीति ने ठाकरे एंड कंपनी का स्कूटर पंचर कर दिया है। एक को सत्ता चाहिए, दूसरे को मंच। अब चाहे दिल मिले या नहीं — फोटो फ्रेम में हंसना तो पड़ता है, क्योंकि महाराष्ट्र की सियासत में "कुर्सी न सही, कैमरा तो पास होना चाहिए!"
🔚 नाथ का आखिरी निवाला:
"जब राजनीति में व्यंग्य खत्म हो जाए,
और भाईचारा सिर्फ कैमरे में नजर आए —
तब समझो कि पब्लिक की थाली फिर भूख से खाली रह जाएगी!"
📸 कैप्शन सुझाव:
जब राजनीति में हारी दो चालें,
तो फ्रेम में डाल ली पुरानी यादों की मालाएं!
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